रीवा का इतिहास: जानिए क्या हैं रीवा का इतिहास रीवा क्यो नही हुआ फिरंगियों का गुलाम

रीवा का इतिहास: रीवा मध्य प्रदेश भारत के सबसे बड़े राज्यों में से एक है उसमें रीवा मध्य प्रदेश का बेहद प्रमुख क्षेत्र हैं जो कि निश्चित तौर पर विंध्य क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है रीवा के इतिहास की प्रमुख घटनाएं मध्य प्रदेश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है !

रीवा का इतिहास: यहां राजघराने ले लोग रहा करते थे

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इतिहास गवाह है सांस्कृतिक प्रदेश से यह छह अलग-अलग संस्कृतियों में मध्य प्रदेश में रीवा रियासत को राजघराने के लिए जाना जाता था जहां केवल राजा-रजवाड़े राजपूत वंश के लोग रहा करते थे यहां यह परंपरा सदियों से चली आ रही है जिसमें राजाओं की जगह पर भगवान राम को कबीर विघ्न वंश के राजाओं के शासनकाल में वृद्धि होती थी मान्यताओं के अनुसार भगवान राम की गद्दी जो कि हमेशा खाली रहती थी जहा दूसरी तरफ राजा बैठते थे ।

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राम चन्द्र जी की गद्दी के सामने बैठते थे राजा

रीवा के राजघराने के महाराजा जहा बैठकर अपना सम्राट चलाते थे पहले रीवा राजघराने की राजधानी बांधवगढ़ हुआ करते थे जिसको आज के समय में उमरिया के नाम से जाना जाता है सन 1618 में 16वीं शताब्दी में राजा विक्रमादित्य रीवा आए उस समय भी यह परंपरा थी यहां पर राजा श्री रामचंद्र को ही बनाया गया था और जो यहां के राजा थे वह श्री रामचंद्र जी के सेवक के रूप में राज्य के कार्यभार को संभालते थे जिस कारण से यह परंपरा रीवा राजघराने को देश में अलग पहचान देती थी और यह लोग अपना कुल लक्ष्मण जी को मानते थे

महाराजा रघुराज सिंह ने लक्ष्मण बाग मंदिर के किए थे स्थापना

महाराजा रघु राज सिंह ने लक्ष्मण बॉग संस्थान की स्थापना की और वहां पर लक्ष्मण जी का मंदिर भी बनवाया था । पुजारी महासभा के अध्यक्ष अशोक पांडे जी कहते हैं कि इस परंपरा का लाभ यह है कि सिंहासन पर बैठे राजाधिराज श्री रामचंद्र जी ने हर संकट से बचाया है हर विपरीत परिस्थितियों से उबरते हुए लोगों का मानना है कि यहां पर कई बार भयानक परिस्थितियां भी उत्पन्न हुई लेकिन वह समस्याएं भी बेहद आसानी से सुलझ गई रीवा जिला यह सब कुछ कारणों से भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में विख्यात हो गया है।

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रीवा कभी नहीं बना फिरंगियों का गुलाम

यही कारण है कि मध्य प्रदेश की एक ऐसी रियासत जो कभी भी अंग्रेजों और मुगलों का गुलाम नहीं हुई थी रीवा रियासत कि गुलाम ना होने के पीछे बहुत सारी वजहें भी थीं जिसमें कि पहली बज़ह तो यह थी कि उस समय रीवा रियासत पूर्ण रूप से विकसित नहीं थी क्योंकि उस समय रियासत का ज्यादातर हिस्सा विंध्य प्रदेश हुआ करता था जहां पर

जहा पर ज्यादातर तादाद में जंगल और जानवर हुआ करते थे हालांकि प्राकृतिक रूप से रीवा आज भी सुंदर प्रदेश हैं वहीं रीवा सफेद बाघो की धरती के घने जंगलों में सबसे पहला सफेद बाघ बाला शहर है जहा पहली बार सफेद शेर देखा गया था तब रीवा में महाराजा गुलाब सिंह हुआ करते थे तब महाराजा गुलाब सिंह अपने वैज्ञानिकों की सहायता से कुछ दुर्लभ प्रजाति के बाघों को विकसित कराया आज दुनिया में जितने भी बड़े-बड़े चिड़ियाघरों में
जो सफेद बाघ या शेर है वह रीवा रियासत की देन
है जो रीवा में सबसे पहला सफेद शेर पाया गया था उस बाघ का नाम मोहन था सफेद बाघ का शहर रीवा को कहा जाता है उस बाघ का अस्थिपिंजर आज भी रीवा के म्यूजियम में देखा जा सकता है

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रियासत रीवा की एक और सबसे खास बात यह है कि जब पूरे भारत में अंग्रेजों की हुकूमत थी तब उस समय रीवा संपूर्ण रूप से स्वतंत्र था रीवा के बारे में एक ऐसी भी मान्यता प्रचलित थी कि विन्ध्य में बड़े प्रतापी राजा हुआ करते थे माना जाता है कि एक बार महाराजा रघु राज सिंह अयोध्या से लौट रहे थे तब उस समय सोन नदी उफान में थी तो उन्होंने सोन नदी से पार जाने के लिए रास्ता मांगा तो सोन नदी ने उनकोरास्ता दे दिया ऐसे ही एक बार महाराजा रघु राज सिंह जी को फिरंगियों ने आमंत्रित किया था तब उनके अस्त्र-शस्त्र बाहर रखवा लिए गए थे और फिर उनपर संधि के
क्वाथ डाला गया तो उन्होंने गुस्से में पैर से फायर किया तो एक बड़ी चट्टान के दो टुकड़े हो गए जिसके कारण अंग्रेज भी उनसे हैरतअंगेज तरीके से भयभीत हो गए ।

संगीत गाने से होती थी रुक-रुक कर बारिश

प्रतापी राजा रीवा के इतिहास में हुए हैं जिसमें कि राजा गुलाब सिंह राजेश सिंह और राजा मार्तंड सिंह थे जो आपको अचरज में डाल सकती है कि अकबर के नवरत्नों में शामिल प्रसिद्ध बुद्धिमान बीरबल और संगीतकार तानसेन चुनिंदा संगीतकारों में से एक थे जो अपने राग से रूक-रूक बारिश करने को मजबूर कर देते थे ।

विंध्याचल पर्वत श्रृंखला पर फैले विंध्य क्षेत्र के मध्य भाग में स्थित रीवा शहर मनमोहक मधुर गान के वादक और बादशाह अकबर के नवरत्न तानसेन और बीरबल जैसे महान गायकों की जन्मस्थली थी। कलकार बिहार और विचैया नदी के किनारे बसा रीवा शहर बघेल वंश के शासकों की राजधानी होने के साथ-साथ विंध्य प्रदेश की राजधानी भी रहा है।

रीवा का इतिहास: बघेल नरेश की राजधानी रही रीवा

रीवा बघेल नरेश की राजधानी रही हैं| सन 1618 में रीवा नरेश विक्रमादित्य सिंह ने बांधवगढ़ को राजधानी का दर्जा ख़त्म कर के रीवा नगर को राजधानी बनाया| तथा इसे विस्तृत और स्थापित किया | तब से 1947 ई. तक रीवा बघेल नरेशो की राजधानी रही|

रीवा का इतिहास: कला और संस्कृति को लेकर रीवा चर्चा में रहा

एमपी के रीवा की की कला और संस्कृति काफी समृद्ध थी, प्राचीन काल में इस भू-भाग में कर्चुली नरेशो का लगभग 12वी शताब्दी तक आधिपत्य रहा | कर्चुली नरेशो ने सुंदर मंदिरों और मठो का निर्माण कराया, और उसके बाद बघेल नरेशो के शासनकाल में भी कई खूबसूरत भवन, मंदिर आदि के निर्माण कार्य कराए गये है आज भी कई वर्षों पुरानी मंदिर और बड़े भवन बने हुए है तत्कालीन रीवा राज्य की सीमाये यमुना के किनारों से लेकर अमरकंटक तक रही हैं |यहाँ के जंगल विशाल एवम् घने थे| इन जंगलो में वर्तमान समय में कई प्रकार के जंगली जानवर पाए जाते हैं | देश की आजादी के बाद 1948 में आसपास की कई रियासतों को मिलाकर विन्ध्यप्रदेश का गठन किया गया, जिसकी राजधानी रीवा बनायी गयी |रीवा नरेश महाराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव को राज प्रमुख बनाया गया|

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सन 1956 में मध्यप्रदेश राज्य का गठन हुआ जिसमे विंध्यप्रदेश का विलय कर दिया गया| रीवा संभाग के अंतर्गत पाँच जिले रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली और मऊगंज आते हैं, इस संभाग का संभागीय मुख्यालय रीवा अभी भी हैं| रीवा जिले में यहाँ सदियों से सभी धर्म के लोग रहते चले आ रहे हैं, सभी एक दुसरे के प्रति गहरा सद्भाव रखते हैं | यहाँ के प्रमुख त्योहारो में दीवाली, दशहरा, होली, शिवरात्रि, रामनवमी, बसंत पंचमी, ईद, बकरीद आदि हैं, सभी एक दुसरे के त्योहार में शामिल होते है|

रीवा का इतिहास: सफेद शेरो की धरती क्यो पड़ी रीवा

पूरी दुनिया में रीवा को “सफेद बाघों की धरती” के रूप में जाना जाता है क्योंकि पहला सफेद बाघ रीवा में पाया गया था। इसका नाम मोहन शासक राजा महाराजा मार्तंड सिंह ने रखा था। मोहन की संतान अब पूरी दुनिया में फैली हुई है। मध्य विंध्य पठार पर स्थित रीवा 17 वीं शताब्दी ईस्वी की शुरुआत से रीवा रियासत की राजधानी थी। रीवा नाम पवित्र नदी नर्मदा के प्राचीन नाम ‘रेवा’ से लिया गया है। रीवा को विंध्य प्रदेश की राजधानी होने का गौरव भी प्राप्त था। रीवा दुनिया का एकमात्र स्थान है जहाँ बीटल नट्स (सुपारी) से सुंदर हस्तशिल्प बनाए जाते हैं। शिल्प की बारीकियां ऐसी हैं कि तैयार काम पर जोड़ बिल्कुल भी दिखाई नहीं देते हैं।

रीवा का इतिहास: रीवा शिक्षा और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र

वर्तमान में रीवा मध्य भारत में शिक्षा और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र और एक संभागीय मुख्यालय है। इसे सैनिक स्कूल होने का सौभाग्य प्राप्त है, जो प्रत्येक राज्य में एकमात्र है। यह क्षेत्र एनटीपीसी, एनसीएल, जेपी सीमेंट, एसीसी सीमेंट, प्रिज्म सीमेंट, बिरला एरिक्सन जैसी दिग्गजों की मौजूदगी और एस्सार समूह, रिलायंस, केजेएस सीमेंट्स और अन्य जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रवेश के कारण एक औद्योगिक क्षेत्र के रूप में तेजी से विकसित हो रहा है।

रीवा का इतिहास: एशिया का सबसे बड़ा सोलर प्लांट

इस क्षेत्र में एशिया के सबसे बड़े सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना हुई जिसकी बिजली मध्य प्रदेश के राज्य के बाहर दिल्ली जैसे राज्यों में मेट्रो ट्रेन को चलाने के लिए भेजी जाती है आपको बता दे की मध्य प्रदेश के साथ-साथ मध्य प्रदेश के बाहर के राज्यों में भी रीवा के सोलर प्लांट की बिजली मिलती है और अद्वितीय व्हाइट टाइगर सफारी ने इसे मध्य प्रदेश और मध्य भारत में ऊर्जा और पर्यटन के एक प्रमुख केंद्र में बदल दिया है। सतना, जबलपुर, इलाहाबाद और वाराणसी से सड़कों की चार-लेन कनेक्टिविटी ने रीवा में व्यापार और वाणिज्यिक गतिविधियों की गति को बढ़ा दिया है। बाणसागर बांध परियोजना का चालू होना और क्षेत्र में इसके नहर नेटवर्क का तेजी से फैलना इस क्षेत्र के भाग्य को फिर से लिखना तय है।

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