सेंट्रल इंडिया से कैसे बना ‘मध्य प्रदेश ‘, विंध्य तोड़ इस जिले को बनाया राज्य की राजधानी, जानिए अपने एमपी का इतिहास – History Of MP

History of MP (Madhya Pradesh) मध्य प्रदेश का गठन करीब 66 साल पहले हुआ था, लेकिन देश के मध्य में स्थित इस राज्य की स्थापना की कहानी काफी पुरानी है, क्योंकि आजादी के बाद राज्यों के पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू हुई। राज्यों के पुनर्गठन के लिए राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया गया। आयोग के समक्ष सभी कारकों और सिफारिशों को रखने के लिए महाकौशल के नेताओं ने पंडित रविशंकर शुक्ल के नेतृत्व में एक बैठक बुलाई। इस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि महाकोशल, ग्वालियर-चंबल, विंध्य प्रदेश और भोपाल के आसपास के इलाकों को मिलाकर एक ऐसा राज्य बनाया जाए जो उत्तर प्रदेश बड़े राज्य जैसा हो।

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पंडित रविशंकर शुक्ल के नेतृत्व में हुई बैठक से निकली सभी सिफारिशें राज्य पुनर्गठन आयोग के समक्ष रखी गईं। इन सिफारिशों को लागू करने की जिम्मेदारी वरिष्ठ कांग्रेस नेता द्वारका प्रसाद मिश्र और घनश्याम सिंह गुप्ता को दी गई। इन दोनों नेताओं ने सभी सिफारिशें राज्य पुनर्गठन आयोग के समक्ष रखीं और फिर 34 मई को उन पर विचार शुरू हुआ। इन सिफारिशों पर ढाई साल से ज्यादा समय तक चर्चा हुई और फिर मध्य प्रदेश का स्वरूप सामने आया।

दरअसल, मध्य प्रदेश का अस्तित्व ब्रिटिश हुकूमत के समय से था। उस समय मध्य प्रदेश को मध्य भारत ( Center India) के नाम से जाना जाता था जो दो भागों में बंटा हुआ था, जबकि भोपाल में नवाबी संता की एक ही राजधानी नागपुर थी और इसमें बुंदेलखंड और छत्तीसगढ़ की रियासतें शामिल थीं। इसी तरह पार्ट बी की राजधानी ग्वालियर और इंदौर थी जिसमें पश्चिमी रियासतें शामिल थीं यानी आज का मालवा निमाड़ भी इसमें मिलता है। पार्ट रियो भारती की राजधानी उस समय विंध्य प्रदेश के नाम से जानी जाती थी जिसकी अपनी विधानसभाएं थीं।

लेकिन आजादी के बाद राज्यों के पुनर्गठन के लिए 29 दिसंबर 1953 को राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया गया। इसके अध्यक्ष जस्टिस सैयद अफजल अली खान और डॉक्टर के मणिशंकर पंडित हृदयनाथ कुंजरू थे। इन लोगों ने डीपी मिश्रा और घनश्याम सिंह गुप्ता की तमाम सिफारिशों पर चर्चा की जिसके बाद ग्वालियर-चंबल, मालवा-निमाड़ और विंध्य प्रदेश को मध्य भाग में बांट दिया गया। मध्य प्रदेश के गठन पर आम सहमति बनी खास बात यह है कि जब मध्य प्रदेश का गठन हुआ तो पार्टी का हिस्सा नागपुर महाराष्ट्र में शामिल हो गया

बुंदेलखंड और छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश का हिस्सा हो सकते थे, लेकिन बुंदेलखंड का आधा हिस्सा उत्तर प्रदेश में और आधा हिस्सा मध्य प्रदेश में चला गया। इसी तरह पार्ट बी पूरी तरह से एमपी का हिस्सा बन गया और विंध्य प्रदेश भी खत्म हो गया। आजादी के बाद नवाबी शासन भी खत्म हो गया। इसी तरह इन चारों हिस्सों को मिलाकर मध्य प्रदेश का गठन हुआ। डॉ पट्टाभि सीतारमैया मध्य प्रदेश के पहले राज्यपाल बने, जिन्होंने पंडित रविशंकर शुक्ल को मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ दिलाई, जबकि पंडित कुंजीलाल दुबे मध्य प्रदेश की विधानसभा के पहले अध्यक्ष बनाए गए।

ढाई साल से ज्यादा की मेहनत के बाद आखिरकार मध्य प्रदेश का गठन हुआ, लेकिन देश के दिल में बसे इस राज्य की राजधानी की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। इसके गठन के बाद उस समय तीन बड़े शहर ग्वालियर, इंदौर और जबलपुर मध्य प्रदेश का हिस्सा थे। ऐसे में तीनों ही क्षेत्रों के नेताओं ने अपने शहर को राजधानी बनाने की कोशिश की, लेकिन यह इतना आसान नहीं था क्योंकि तीनों ही शहर एक-दूसरे से काफी दूर थे। जिसकी वजह से क्षेत्रीय विवाद भी हुए। बड़ा सवाल यह था कि इतने बड़े राज्य की राजधानी ऐसी होनी चाहिए जो प्रशासनिक और राजनीतिक कार्यों के लिए सबसे उपयुक्त हो। राजधानी की दौड़ में इंदौर और ग्वालियर सबसे आगे थे।

लेकिन अचानक से भोपाल का नाम सामने आया। भले ही इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर राजधानी बनने का दावा कर रहे थे, लेकिन देश के तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के मन में उस समय कुछ और ही था। वह मध्य प्रदेश के मध्य में स्थित भोपाल को मध्य प्रदेश की राजधानी बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात की और यह प्रस्ताव उनके सामने रखा। डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने कहा कि पहाड़ी इलाके में बसा यह शहर राज्य की राजधानी बनने के काबिल है, क्योंकि दूसरे शहरों की तरह यहां न तो गर्मी पड़ती है और न ही सर्दी और थोड़ी सी बारिश से बाढ़ भी नहीं आती।

इसके अलावा जिस तरह मध्य प्रदेश देश के मध्य में स्थित है, उसी तरह भोपाल भी राज्य के मध्य में स्थित है। यहां से राज्य के आसपास की स्थितियों को बेहतर तरीके से जाना जा सकता है, जबकि राज्य के बाकी तीन बड़े शहरों से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। पंडित जवाहरलाल नेहरू को डॉ. शंकर दयाल शर्मा का यह प्रस्ताव पसंद आया। ऐसे में उन्होंने भोपाल को मध्य प्रदेश की राजधानी बनाने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

भोपाल जब राजधानी बना तो यह गृह जिले की एक तहसील ही था, लेकिन बाद में यह शहर राज्य का केंद्र बन गया, जहां 1972 में भोपाल को एक अलग जिले का दर्जा मिला। मध्य प्रदेश के गठन के समय 66 साल से ज्यादा के अपने सफर में मध्य प्रदेश में सिर्फ 43 जिले बनाए गए थे। लेकिन वर्तमान में बढ़ती आबादी के कारण व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए अब मध्य प्रदेश में कई जिले बनाए गए हैं। एक नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ को मध्य प्रदेश से अलग कर अलग राज्य बनाया गया। वर्तमान में मध्य प्रदेश में 230 विधानसभा सीटें और 29 लोकसभा सीटें हैं। वर्तमान में मध्य प्रदेश छह हिस्सों में बंटा हुआ है जिसमें ग्वालियर-चंबल, महाकौशल, बुंदेलखंड, विंध्य और मालवा-निमाड़ शामिल हैं।

ये अलग-अलग रहन-सहन, बोलियां, खान-पान और पहचान हैं। अलीगढ़ में मौलवी, बुंदेलखंडी में निमाड़ी, बघेलखंड में बुंदेली, बघेल बोलियां आज भी यहां के आत्मीय संवाद का हिस्सा हैं। इतना ही नहीं, इन क्षेत्रों की कृषि, पुरातात्विक संपदा और भौगोलिक विशेषताओं का भी यहां के निवासियों पर प्रभाव पड़ता है। मध्य प्रदेश में आपको मराठी, गुजराती, यूपी और राजस्थानी संस्कृति भी देखने को मिलेगी।

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